वो प्यार जिसके लिए हमने क्या गंवा न दिया,
उसी ने बच के निकलने का रास्ता न दिया।

कोई नज़र में रहा भी तो इस सलीके से,
कि मैंने उसके ही घर का उसे पता न दिया।

जब एक बार जला लीं हथेलियां अपनी,
तो फिर ख़ुदा ने भी उस हाथ में दिया न दिया।

यह गुमरही का भी नशा अजीब था वरना,
गुनाहगार ने रस्ता, न फ़ासिला, न दिया।

ज़बां से दिल के सभी फैसले नहीं होते,
उसे भुलाने को कहते तो थे भुला न दिया।

‘वसीम’ उसके ही घर उस पे ही तनक़ीद,
यही बहुत है कि उसने तुम्हें उठा न दिया।