रात के टुकड़ों पे पलना छोड़ दे,
शमा से कहना के जलना छोड़ दे।

मुश्किलें तो हर सफ़र का हुस्न हैं,
कैसे कोई राह चलना छोड़ दे।

तुझसे उम्मीदे- वफ़ा बेकार है,
कैसे इक मौसम बदलना छोड़ दे।

मैं तो ये हिम्मत दिखा पाया नहीं,
तू ही मेरे साथ चलना छोड़ दे।

कुछ तो कर आदाबे-महफ़िल का लिहाज़,
यार ! ये पहलू बदलना छोड़ दे।