हुस्न बाज़ार हुआ क्या, कि हुनर ख़त्म हुआ,
आया पलकों पे, तो आँसू का सफ़र ख़त्म हुआ।
उम्र भर तुझसे बिछड़ने की कसक ही न गयी,
कौन कहता है की मुहब्बत का असर ख़त्म हुआ।
नयी कालोनी में बच्चों की ज़िदे ले तो गईं,
बाप दादा का बनाया हुआ घर ख़त्म हुआ।
जा, हमेशा को मुझे छोड़ के जाने वाले,
तुझ से हर लम्हा बिछड़ने का तो डर ख़त्म हुआ।