मचल के जब भी आँखों से छलक जाते है दो आंसू,
सुना है आबशारों को बड़ी तकलीफ होती है
ख़ुदारा अब तो बुझ जाने दो इस जलती हुई लौ को
चरागों से मज़ारो को बड़ी तकलीफ होती है
मचल के जब भी आँखों से छलक जाते है दो आंसू,
कहूँ क्या वो बड़ी मासूमियत से पूछ बैठे है
क्या सच मुच दिल के मारो को बड़ी तकलीफ होती है
मचल के जब भी आँखों से छलक जाते है दो आंसू,
तुम्हारा क्या तुम्हे तो राह दे देते है कांटे भी
मगर हम ख़ाकसारों को बड़ी तकलीफ होती है
मचल के जब भी आँखों से छलक जाते है दो आंसू
सुना है आबशारों को बड़ी तकलीफ होती है