कोई हम-दम न रहा कोई सहारा न रहा,

हम किसी के न रहे कोई हमारा न रहा।

शाम तन्हाई की है आएगी मंज़िल कैसे,

जो मुझे राह दिखा दे वही तारा न रहा।

ऐ नज़ारो न हँसो मिल न सकूँगा तुम से,

तुम मिरे हो न सके मैं भी तुम्हारा न रहा।

क्या बताऊँ मैं कहाँ यूँही चला जाता हूँ,

जो मुझे फिर से बुला ले वो इशारा न रहा।