किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई,
मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में माँ आई,
यहाँ से जाने वाला लौट कर कोई नहीं आया,
मैं रोता रह गया लेकिन न वापस जा के माँ आई।
अधूरे रास्ते से लौटना अच्छा नहीं होता,
बुलाने के लिए दुनिया भी आई तो कहाँ आई,
किसी को गाँव से परदेस ले जाएगी फिर शायद,
उड़ाती रेल-गाड़ी ढेर सारा फिर धुआँ आई।
मिरे बच्चों में सारी आदतें मौजूद हैं मेरी,
तो फिर इन बद-नसीबों को न क्यूँ उर्दू ज़बाँ आई,
क़फ़स में मौसमों का कोई अंदाज़ा नहीं होता,
ख़ुदा जाने बहार आई चमन में या ख़िज़ाँ आई।
घरौंदे तो घरौंदे हैं चटानें टूट जाती हैं,
उड़ाने के लिए आँधी अगर नाम-ओ-निशाँ आई,
कभी ऐ ख़ुश-नसीबी मेरे घर का रुख़ भी कर लेती,
इधर पहुँची उधर पहुँची यहाँ आई वहाँ आई।