दोस्त शायर था मेरा…
बेतकल्लुफ़ था, किसी बात पे कह दिया मैंने
“मरने से पहले भी तुम, नज़्म कोई कह के मरोगे?”
मुस्कुरा के मुझे देखा, कहा-
“मरने से पहले कोई नज़्म नहीं होती कभी दोस्त
मरने के बाद ही कहता हूं मैं हर नज़्म हमेशा!”