कभी चाँद की तरह टपकी, कभी राह में पड़ी पाई
अट्ठन्नीसी ज़िंदगी, ये ज़िंदगी
कभी चींक की तरह खनकी, कभी जेब से निकल आई
अट्ठन्नीसी ज़िंदगी, ये ज़िंदगी

कभी चेहरे पे जड़ी देखी, कहीं मोड़ पे खड़ी देखी
शीशे के मरतबानों में, दुकान पे पड़ी देखी
चौकन्नी सी ज़िंदगी, ये ज़िंदगी …

तमगे लगाके मिलते है, मासूमियत सी खिलती है
कभी फूल हाथ में लेकर, शाख़ों पे बैठी हिलती है
अट्ठन्नीसी ज़िंदगी, ये ज़िंदगी …