न आने की आहट न जाने की टोह मिलती है,
कब आते हो? कब जाते हो ?
इमली का ये पेड़ हवा में हिलता है तो,
ईंटों की दीवार पे परछाई का छींटा पड़ता है।
और जज़्ब हो जाता है, जैसे सूखी मिटटी पर कोई,
पानी का क़तरा फेंक गया हो।
धीरे-धीरे आँगन में फिर धूप सिसकती रहती है।
कब आते हो? कब जाते हो ?
बंद कमरे में कभी-कभी,
जब दिए की लौ हिल जाती है तो,
एक बड़ा सा साया मुझको घूँट-घूँट पीने लगता है।
आँखें मुझसे दूर बैठकर मुझको देखती रहती हैं।
कब आते हो? कब जाते हो ?
दिन में कितनी-कितनी बार मुझको तुम याद आते हो।