फिर छिड़ी रात बात फूलों की,

रात है या बरात फूलों की।

फूल के हार फूल के गजरे,

शाम फूलों की रात फूलों की।

आप का साथ साथ फूलों का,

आप की बात बात फूलों की।

नज़रें मिलती हैं जाम मिलते हैं,

मिल रही है हयात फूलों की।

कौन देता है जान फूलों पर,

कौन करता है बात फूलों की।

वो शराफ़त तो दिल के साथ गई,

लुट गई काएनात फूलों की।

अब किसे है दिमाग़-ए-तोहमत-ए-इश्क़,

कौन सुनता है बात फूलों की।

मेरे दिल में सुरूर-ए-सुब्ह-ए-बहार,

तेरी आँखों में रात फूलों की।

फूल खिलते रहेंगे दुनिया में,

रोज़ निकलेगी बात फूलों की।

ये महकती हुई ग़ज़ल ‘मख़दूम’,

जैसे सहरा में रात फूलों की।