मैं ने ये कहा कब कि मनाने के लिए आ, मुझ काठ के उल्लू को फँसाने के लिए आ। मेरे लिए आ और न ज़माने के लिए आ, बच्चे को फ़क़त दूध पिलाने के लिए आ। हर रोज़ वही गोश्त वही गोश्त वही गोश्त, इक दिन तो कभी दाल पकाने के लिए आ, जो हुस्न जवानों के लिए वक़्फ़ है उस को, इक बार तो...
कभी कभी मिरे दिल में ख़याल आता है, कि ज़िंदगी तिरी ज़ुल्फ़ों की नर्म छाँव में। गुज़रने पाती तो [simple_tooltip content=’प्रफुल्ल, verdant’]शादाब[/simple_tooltip] हो भी सकती थी, ये [simple_tooltip content=’अँधेरा,...
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों, न मैं तुम से कोई उम्मीद रखूँ दिल-नवाज़ी की। न तुम मेरी तरफ़ देखो ग़लत-अंदाज़ नज़रों से, न मेरे दिल की धड़कन लड़खड़ाए मेरी बातों से। न ज़ाहिर हो तुम्हारी कश्मकश का राज़ नज़रों से, तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेश-क़दमी से। ...
कहा था किसने के अहद-ए-वफ़ा करो उससे, जो यूँ किया है तो फिर क्यूँ गिला करो उससे। ये [simple_tooltip content=’लोगों की सभा, assembly of people’]अह्ल-ए-बज़[/simple_tooltip] [simple_tooltip content=’ईर्ष्या की हिम्मत, courage of...
न जी भर के देखा न कुछ बात की बड़ी [simple_tooltip content=’इच्छा, चाहत ‘]आरज़ू [/simple_tooltip]थी मुलाक़ात की कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं कहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की उजालों की परियाँ नहाने लगीं नदी गुनगुनाई ख़यालात की मैं चुप था तो चलती हवा रुक गई ज़ुबाँ...
मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न माँग मैं ने समझा था कि तू है तो दरख्शां है हयात, तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है। तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात, तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है। तू जो मिल जाये तो तक़दीर निगूँ हो जाए, यूँ न था मैंने...