रुख़ से पर्दा उठा दे

रुख़ से पर्दा उठा दे

रुख़ से पर्दा उठा दे ज़रा साक़िया, बस अभी रंग-ए-महफ़िल बदल जाएगा। है जो बे-होश वो होश में आएगा, गिरने वाला है जो वो सँभल जाएगा। तुम तसल्ली न दो सिर्फ़ बैठे रहो, वक़्त कुछ मेरे मरने का टल जाएगा। क्या ये कम है मसीहा के रहने ही से, मौत का भी इरादा बदल जाएगा। तीर की जाँ है...
किसी सूरत भी नींद आती

किसी सूरत भी नींद आती

किसी सूरत भी नींद आती नहीं मैं कैसे सो जाऊँ कोई शय दिल को बहलाती नहीं मैं कैसे सो जाऊँ अकेला पा के मुझ को याद उन की आ तो जाती है मगर फिर लौट कर जाती नहीं मैं कैसे सो जाऊँ   kisee soorat bhee neend aatee nahin main kaise so jaoon koee shay dil ko bahalaatee nahin...
मैं नज़र से पी रहा हूँ

मैं नज़र से पी रहा हूँ

मैं नज़र से पी रहा हूँ ये समाँ बदल न जाए न यूं झकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाए मेरे अश्क भीं है इस में ये शराब उबल न जाए मेरा जाम छूने वाले तेरा हाथ जल न जाए अभी रात कुछ है बाक़ी न उठा नक़ाब साक़ी तेरा रिंद गिरते गिरते कहीं फिर सँभल न जाए मेरी ज़िंदगी के मालिक मेरे...
दुश्मन से हमको

दुश्मन से हमको

दुश्मन से हमको कोई शिकायत नहीं ‘वसीम’ जितने फरेब खाये अपनों से खाये हैं dushman se hamako koee shikaayat nahin vaseem jitane phareb khaaye apanon se khaaye...
वो मस्जिद की खीर

वो मस्जिद की खीर

वो मस्जिद की खीर खाता है और मंदिर का लड्डू भी खाता है , वो भूखा है साहब उसे मज़हब कहाँ समझ आता है? vo masjid kee kheer khaata hai aur mandir ka laddoo bhee khaata hai , vo bhookha hai saahab ise majahab kahaan samajh aata...